हम सभी को पता है कि मिश्री मीठी होती है।
आप मुँह मे मिश्री डालकर चाहे घूमे, चाहे बैठ जाये, चाहे लेट जाएँ।
पर जब तक मुँह मे मिश्री है तब तक मुँह मीठा रहेगा जी।
इसी प्रकार सुमिरन है।
जब हम चलते-फिरते, उठते-बैठते, खाते-पीते,
यानि हम जिस स्थिति मे भी हो, सुमिरन करते रहेंगे,
तो उस मिश्री की तरह नाम का मिठास हमारी आत्मा को आता रहेगा जी।
क्योंकि सुमिरन शरीर की नहीं आत्मा की खुराक है।
इसलिए हमारी कोशिश होनी चाहिये कि हम जिस स्थिति मे भी हो
सुमिरन की मिठास अपनी आत्मा को देते रहें ।