प्रीतम और उसके पिताजी सरकारी नौकरी करते थे । दोनों एक ही दफ्तर में काम करते थे , वह लोग अहमदाबाद में रहते थे ।अहमदाबाद से उन दोनों बाप बेटे का तबादला होकर बनारस में हो गया ।अब उन लोगों को घर बदलना था उन्होंने सारा सामान पहले ही बनारस भेज दिया। लेकिन उनका पूरा परिवार बाद में एक गाड़ी में बैठ कर गए ।प्रीतम की माता उसकी बहन और प्रीतम के पिताजी अपने गाड़ी में बनारस की ओर चल पड़े। प्रीतम की मां बहुत ही धार्मिक विचारों वाली औरत थी ।उनके घर में उनकी पूर्वजों की एक ठाकुर जी की बहुत ही ज्यादा प्राचीन प्रतिमा थी। वह प्रतिमा मे इतना आकर्षण था कि जो उसको एक बार देख लेता उसकी तरफ आकर्षित हो जाता। प्रीतम की मां तो उनकी इतनी पूजा करती थी कि पूजा के बगैर जैसे उसको चैन ही ना आता । प्रीतम की मां ठाकुर जी को अपनी गोदी में बिठा कर मलमल के कपड़े में लपेटकर लेकर जा रही थी ।
जब वह बनारस में जिस मोहल्ले में रहना था वहां पहुंचे तो मोहल्ले के मोड़ पर उनकी गाड़ी खराब हो गई ।यहा उनकी गाड़ी रुकी वंहा सामने ही मनीराम नामक व्यक्ति की पान की दुकान थी ! पानवाला जब भी किसी को पान दे रहा था तो जोर जोर से राधे राधे बोलता जो भी उसे पान लेता तो वह कहता यह लो भैया राधे राधे। उनकी गाड़ी वहां पर एक घंटा रुकी रही मनीराम ने 1 घंटे में ना जाने कितनी बार राधे राधे का नाम ले लिया उसकी आवाज इतनी ऊंची थी कि सारे मोहल्ले में गूंज रही थी अगर कोई पान ना भी लेने आता तो भी वह अपनी धुन में राधे राधे करता रहता।
उसकी इतनी ऊंची आवाज सुनकर प्रीतम थोड़ा सा झल्ला उठा ।गर्मी के दिन थे ऊपर से उसकी गाड़ी खराब हो गई थी और 1 घंटे से ठीक नहीं हो रही थी ।तो पान वाले की ऊंची आवाज सुनकर प्रीतम उसके पास गया और बोला भैया क्या तुम थोड़ा धीरे नहीं बोल सकते थोड़ी देर चुप नहीं रह सकते हम लोग पहले से ही बहुत परेशान हैं और तू इतनी जोर से ऊंची ऊंची बोले जा रहा है ।तो वह पानवाला हंसकर बोला भैया क्या इस मोहल्ले में नए आए हो मैं बिना सांस के रह सकता हूं लेकिन बिना राधे राधे बोले नहीं रह सकता ।तो प्रीतम झल्ला कर वापस आ गया ।तभी उसकी मां ने बोला कि बेटा तुम्हें नहीं पता की हमारे ठाकुर जी को खाने के बाद पान का भोग लगाते हैं जो हमारे पूर्वजों की परंपरा चली आ रही है तुम भी ठाकुर जी के लिए पान ले लाओ। ताकि हम उनको घर जाकर खाने के बाद पान का भोग लगा सके। तो प्रीतम मनीराम के पास जाकर बोला कि भैया 5 पान लगा कर दे दो ।तो मनीराम बोला राधे राधे भैया अभी लगा कर देता हूं मनीराम एक पत्ते पर कत्था और चूना लगाते लगाते राधे राधे बोलता जाता और अंत में पांच पान बांधकर प्रीतम को राधे-राधे कह कर दे दिए।
प्रीतम और उसका परिवार अपने घर पर गए रात को खाने के बाद ठाकुर जी को पान का भोग लगा दिया सुबह जब प्रीतम की मां मंदिर में गई तो उसने देखा ठाकुर जी की प्रतिमा के चेहरे पर मुस्कान और तेज हो गई है परंतु उनके मुंह से खून निकल रहा है तो प्रीतम की मां जोर जोर से चिल्लाने लगी तो डर कर सब लोग मंदिर में आ गए और बोले कि मां क्या हुआ तो प्रीतम की मां बोली यह कैसा अनर्थ हो गया हमारे ठाकुर जी के मुंह से तो खून निकल रहा है तो सब लोग हैरानी से देखने लगे तो प्रीतम बोला कोई बात नहीं मां तुम ठाकुर जी को स्नान करवाओ फिर देखते हैं तो प्रीतम की मां ने ठाकुर जी को स्नान कराया तो खून साफ हो गया।
अब तो प्रीतम रोज ठाकुर जी के लिए मनीराम की दुकान से पान ले कर आता और ठाकुर जी को भोग लगाता और सुबह फिर वैसे ही ठाकुर जी के मुंह से खून निकलता ।अब तो सब लोग परेशान होने लगे एक दिन प्रीतम अपने दफ्तर के रास्ते से वापस आ रहा था तो उसको वहां एक और पान की दुकान नजर आई तो उसने ठाकुर जी के लिए पान वहीं से ले लिए उसने सोचा कि आगे जाकर ना लेकर यही से ले लेता हूं ।तो घर जाकर उसने रात को ठाकुर जी को पान का भोग लगाया सुबह जब उसकी मैया उठी तो उसने देखा कि पान सड कर काले हो चुके हैं ठाकुर जी के मुख पर भी वह चमक नहीं है और आज ठाकुर जी के मुंह से खून नहीं निकल रहा तो उसकी मैया हैरान होकर बोली यह कैसे हो गया आगे तो रोज पान हरे भरे रहते हैं लेकिन आज पान काले कैसे हो गए और आज ठाकुर जी थोड़े उदास लग रहे हैं
तभी इतना ही वह कह रही थी बाहर से दरवाजा खटखटाने की आवाज आई प्रीतम भाग कर बाहर गया तो उसने देखा कि मनीराम बाहर खड़ा है तो उसने आकर हाथ जोड़कर सबको राधे-राधे बोला तो प्रीतम ने कहा कि मनीराम यहां कैसे आना हुआ तो प्रीतम भोला भैया मेरे मोहल्ले में जितने लोग भी पान लेकर जाते हैं मैं उन सब के घर से होकर आया हूं आपका ही घर रह गया था जो मुझसे पान लेते थे। आप कल पान लेने नहीं आए तो कल रात को मेरे घर का कोई सौ बार दरवाजा खटखटा कर गया है और बाहर से आवाज आती थी आज पान नहीं खिलाओगे । ना जाने वह कौन था बाहर आकर देखा तो उस आदमी को पहले कभी नहीं देखा था।पर फिर वो बिना पान लिए ही चला गया । जब तक मैं कुछ समझ पाता वो जा चुका था । इसलिए सारी रात मै परेशान रहा। मैं सारे घर से पूछ आया हूं अब आपका ही घर बचा है।
तो प्रीतम और उसके घर वाले एक दूसरे का मुंह देखने लगे कि कल तो हम ही इन्से पान नहीं लाए थे तो प्रीतम बोला हां भैया मैं कल कहीं और से पान लेकर आया था लेकिन वह ठाकुर जी ने अरोगे ही नहीं ।वहीं के वहीं पड़े हैं और सड़ चुके हैं लेकिन जब से तेरा पान खाना शुरू किया है तो ठाकुर जी के मुंह से खून निकलता है। तो मनीराम हैरान होकर मंदिर की तरफ गया ठाकुर जी की इतनी कशिश भरी मूर्ति देखकर वह बावंला सा हो गया और उसके मुख से राधे राधे ही निकलता रहा और उसकी आंखों में अश्रु धारा बहती गई और कहने लगा अरे यह तो मेरी राधा के प्रियतम है यही थे जो मेरे घर का दरवाजा खटखटा रहे थे ।तुम लोग इतने सालों से इनको पान का भोग लगा रहे हो तो क्या आपको यह नहीं पता कि यह खून नहीं बल्कि जो मैं पान देता हूं वह पान का पत्ता ना होकर वह राधे नाम रूपी पत्ता था और उसमें किशोरी जी के नाम का कत्था और चूना लगा होता था और जिस पान को पाकर ठाकुर जी के मुख से राधा नाम रूपी रस निकलता है और तुम लोग उसको खून कह रहे हो ।तुम लोग कितने बांवरे हो।
मैं तो धन्य हो उठा ठाकुर जी मेरे हाथ से बने पान को पाते थे। प्रीतम और उसका परिवार मनीराम के साथ-साथ जोर जोर से राधे राधे का जाप करने लगा। प्रीतम को भी अपनी गलती का एहसास हो चुका था और राधा नाम के महत्वा का पता चल चुका था ।अगर हम भी अपने जीवन को राधा नाम रूपी पान के पत्ते की तरह रखेंगे तो हमारे जीवन में भी हमेशा पान के हरे पत्ते की तरह हरियाली रहेगी और उसमें राधा नाम की भक्ति का कत्था और चूना लगा कर रखेंगे तो उसमें राधा नाम की गहरे लाल रंग की लालिमा हमेशा हमारे जीवन में छाई रहेगी !!