ऋषिकेश में गंगा जी के किनारे एक संत रहा करते थे वह जन्मांध थे. उनका नित्य नियम था कि वह शाम के समय गगन चुंबी पहाड़ों में भृमण करने के लिये निकल जाया करते थे और राम नाम का संकीर्तन करते जाते.
एक दिन उनके एक शिष्य ने उनसे पूछा – गुरु महाराज आप हर रोज इतने ऊंचे ऊंचे पहाड़ों पर भृमण हेतु जाते हैं. वहां पर तो बहुत गहरी – गहरी खाइयां भी हैं. और आपको आंखों से दिखाई भी नहीं देता . क्या आपको डर नहीं लगता ?अगर कभी पांव लड़खड़ा गये और कुछ हो गया तो ?
गुरुजी ने शिष्य से उस समय तो कुछ नहीं कहा पर शाम के समय शिष्य को साथ लेकर चले।।पहाड़ों के मध्य पहुँचे ही थे तो गुरुजी ने शिष्य से कहा – जैसे ही कोई गहरी खाई आये तो बताना।।
दोनों चलते ही जा रहे थे और जैसे ही एक गहरी खाई आयी तो शिष्य ने बताया कि बाबा गहरी खाई आ चुकी है।।गुरुजी ने कहा अब मुझे इसमें धक्का दे दे. शिष्य तो इतना सुनते ही घबरा गया .
उसने कहा गुरु महाराज मैंआपको धक्का कैसे दे सकता हूँ मैं ऐसा हरगिज नहीं कर सकता आप तो मेरे गुरुदेव हैं मैं तो किसी शत्रु को भी इस खाई में नहीं धकेल सकता. गुरुजी ने फिर कहा मैं कह रहा हूँ कि मुझे इस खाई में धक्का दे दे यह मेरी आज्ञा है और मेरी आज्ञा की अवहेलना करोगे तो नर्क गामी हो जाओगे।।शिष्य ने कहा गुरुजी मैं नर्क भोग लूंगा मगर आपको कभी भी इस खाई में नहीं धकेल सकता.
तब गुरुजी ने शिष्य से कहा अरे नादान बालक – जब तुझ जैसा एक साधारण प्राणी मुझे खाई में नहीं धकेल सकता तो बतामेरे रामजी जो मुझे प्राणों से भी अधिक प्यार करते है, भला वो कैसे मुझे खाई में गिरने देगे . यह शरीर भी तो उन्ही की अमानत है वह किसी को भी कभी गिरने नहीं देता उन्हें तो बस उबारना आता है. वह पल – पल में हमारे साथ है बस हमें पूर्ण विश्वास रखना चाहिये उन पर.
मारें रामजी तो फिर बचाये कौन और बचाये मेरे रामजी तो मारे कौन
जाको राखे साईया ( मालिक ) मार सके ना कोई बाल ना बाको कर सके जो जग बैरी होई